Man Kavita Hindi 10Th Class | मन कविता हिंदी कक्षा १० वीं |

मन कविता का पद्य विश्लेषण | Man Poem Explanation | MrSuryawanshi.Com



Man Poem Explanation
Man Poem Explanation



नमस्ते पाठकों,

आज हम ' मन कविता '  का पद्य विश्लेषण करेंगे । मन यह कविता ' हाइकु ' के रूप में लिखी गई है । 

हाइकु किसे कहते है ?


हाइकु विश्व की सबसे छोटी कविता को कहते है । अब ऐसा नहीं है कि आप किसी भी छोटी कविता को हाइकु कहेंगे । ' हाइकु ' पहचान ने का एक नियम है । ५ + ७ + ५ यानी टोटल १७ वर्ण ।

पाँच + सात + पाँच क्या है ?


यहाँ पर मन कविता का एक पदयांश है । प्रथम शब्द है घना । घना शब्द बनाने के लिए दो वर्णों का उपयोग किया गया है । पहला वर्ण 'घ' दूसरा वर्ण 'ना'। दूसरा शब्द है अँधेरा । यहाँ पर तीन वर्ण है । दो और तीन मिलकर बने पाँच । अर्थात इसकी प्रथम पंक्ति पाँच वर्णों से मिलकर बनी । दूसरी पंक्ति  में चमकता और प्रकाश शब्द है । चमकता शब्द में चार वर्ण और प्रकाश शब्द में तीन वर्ण है । अर्थात दूसरी पंक्ति सात वर्णों की हुई । तीसरी पंक्ति में और और अधिक शब्द है । और शब्द दो वर्णों से मिलकर बना है और अधिक शब्द तीन वर्णों से । और संपूर्ण तीसरी पंक्ति पाँच वर्णों से मिलकर बनी है ।

अर्थात प्रथम पंक्ति पाँच वर्णों की, दूसरी पंक्ति सात वर्णों की और तीसरी पंक्ति पाँच वर्णों की होनी चाहिए तभी आप उस कविता को हाइकु के रूप में लिखी गई कविता कह सकते हैं ।

हमने हाइकु किसे कहते है, यह समझा अब मन इस कविता से हमें क्या सीख दि जा रही है यह समझने का प्रयत्न करते है ।


घना अँधेरा चमकता प्रकाश और अधिक | Ghana Andhera Chamakata Prakash Aur Adhik


शब्दार्थ / अर्थ:
  • घना - बहुत ज्यादा, Dence

स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि जब अँधेरा घना होता है। घना अर्थात Dense या बहुत ज्यादा । जब अँधेरा ज्यादा होता है तब प्रकाश और अधिक चमकता है । अर्थात जीतना ज्यादा अँधेरा होगा प्रकाश उससे भी ज्यादा चमकेगा ।

यह एक प्राकृतिक घटना है । इस प्राकृतिक घटना से हमें क्या सीखना चाहिए । हम अँधेरे को मानकर चलते है समस्या और प्रकाश को मानकर चलते है प्रयास या कोशिश । अँधेरा ज्यादा था प्रकाश उससे भी ज्यादा चमक रहा था । मतलब समस्या जितनी बड़ी होगी प्रयास उससे भी अधिक बड़ा करना होगा ।

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करते जाओ पाने की मत सोचो जीवन सारा | Karte Jao Paane Ki Mat Socho Jivan Sara



स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि हमें संपूर्ण जीवन फल की चींता किए बीना कार्य करते रहना है

ऐसा क्यों? क्योंकि बहुत सारे लोग सिर्फ सोचते है, क्या मैं यह कार्य कर पाऊँगा ? क्या मुझसे यह काम होगा ? क्या मुझे सफलता मिलेगी ? मुझे क्या हासिल होगा ?

सिर्फ सोचते बैठने से काम नहीं चलेगा । आपको वह काम करके देखना होगा । या तो आप सफल होंगे या आप सीखेंगे । उस सीख का उपयोग कर आप आगे जाके सफल हो जाएँगे । सिर्फ सोचते बैठने से आप को कुछ हासिल नहीं होगा । इसलिए फब की चींता किए बीना हमें कार्य करते रहना है ।

जीवन नैया मंझधार में डोले, संभाले कौन ? | Jivan Naiya Manjhadhar Me Dole, Sambhale Kaoun ?


शब्दार्थ / अर्थ:
  • मँझधार - नदी के प्रवाह का मध्यभाग । 

स्पष्टीकरण:
इस पद्यांश में एक सवाल पूछा गया है और जीवन की तुलना की गई है ।

जीवन की तुलना किसके साथ हुई है ? नाव के साथ । मानो हमारा जीवन एक नाव है । अब सवाल है, यह नाव मँझधार में डोल रही है लड़खड़ा रही है, आगे चल नहीं पा रही हैं, तो इसे संभालेगा कौन ?

कवि का कहना है कि आपने अपने जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित किया था, परंतु आप अपने लक्ष्य को भूलकर गलत संगत में पड़ गए, आप अपने आप का ही नुकसान कर रहे हो तो आप को संभालेगा कौन ?

जीवन किसका है ? हमारा । तो संभालेगा कौन ? जब जीवन हमारा है, तो संभालना भी हमें ही पड़ेगा । अगर आप किसी से मदद की उम्मीद लगापूर बैठे हो अगर आप किसी फरिश्ते का इंतजार कर रहे हो तो आप का जीवन डूब जाएगा ।

कवि का कहना है, जीवन हमारा है, हमारे जीवन में मुसीबतें है, तो उसे हमें ही दूर करना होगा ।

रंग - बिरंगे रंग - संग लेकर आया फागुन | Rang Birange Rang Sang Lekar Aaya Fagun


स्पष्टीकरण:
इस पद्यांश में फागुन महीने की विशेषता बताई जा रही है । फागुन महीने की विशेषता क्या है ? तो फागुन महीना अपने साथ ढेर सारे रंग लेकर आया है ।

फागुन अर्थात अंग्रेजी का फरवरी और मार्च के बीच आनेवाला महीना । फागुन महीने में ऋतुओं का राजा अर्थात वसंत ऋतु का आगमन होता है । इस कारण प्रकृति में ढेरों बदलाव नजर आते हैं । इसलिए कवि ने कहा है, रंग-बिरंगे, रंग-संग लेकर आया फागुन अर्थात फागुन महीना अपने साथ ढेरों रंग लेकर आया ।

काँटों के बीच खिलखिलाता फूल देता प्रेरणा | Kanto Ke Bich Khilkhilata Phul Deta Prerna 


स्पष्टीकरण:

कवि का कहना है कि फूल काँटों से घीरा होने के बावजूद भी प्रसन्न है । और वह हमें प्रेरणा दे रहा है । अब उस फूल से हमें क्या प्रेरणा मिल रही है ?

फूल से हमें प्रेरणा मिल रही है कि चाहें हमारे जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न हो, हमें हँसकर उसका सामना करना चाहिए ।

भीतरी कुंठा आंखों के द्वार से आई बाहर | Bhitari Kuntha Aankho Ke Dwar Se aai Bahar 


शब्दार्थ / अर्थ:
  • कुंठा - घोर ( बहुत ) निराशा 

स्पष्टीकरण:
भीतर की अर्थात अंदर की, कुंठा अर्थात निराशा । अंदर की निराशा आँखों के रास्ते बाहर आई । मतलब जब कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा निराश होता है, बहुत ज्यादा दुखी होता है या बहुत ज्यादा परेशान होता है तब वह रोता है । जब व्यक्ति रो रहा है तब समझ जाना वह व्यक्ति भीतर से बहुत ज्यादा कुंठित है । भीतर से बहुत ज्यादा निराश है ।

यहाँ पर कवि ने बहती हुई आँखों को परेशान व्यक्ति की, पहचान का माध्यम बताया है ।

खारे जल से धुल गए विषाद मन पावन | Khare Jal Se Dhul Gaye Vishad Man Pavan


शब्दार्थ / अर्थ:
  • विषाद - खेद, दुख 

स्पष्टीकरण:
खारे जल से अर्थात आँसुओं से, धूल गए विषाद अर्थात दुख धूल गए । कवि का कहना है कि व्यक्ति जब बहुत ज्यादा दुखी होता है, परेशान होता है तब वह रोता है और जब वह रोता है तब उसका मन हल्का होता है ।

कवि का कहना है कि कोई बात अंदर मत रखो, अपनी परेशानियाँ व्यक्त करो कुछ तो हल जरूर निकलेगा ।

मृत्यु को जीना जीवन विष पीना है जिजीविषा | Mrityu Ko Jina Jivan Vish Pina Hai Jijivisha


स्पष्टीकरण:
मृत्यु को जीना अर्थात् मृत्यु के समान जीवन है उसको जीना । जीवन विष पीना अर्थात जीवन विष के समान है, उस विष को पीना । क्यों? क्योंकि है, जीजीविषा । अर्थात् जीने की चाह । कवि का कहना है कि जीवन मृत्यु के समान है, विष के समान है फिर भी लोग जीते है, क्योंकि उनमें जीने की चाह होती है । अर्थात विपरीत परिस्थितियाँ होने के बावजूद भी लोगों में जीने की चाह होती है, वह जीवन से बहुत प्रेम करते है, लोग जीवित रहना पसंद करते है । 

 मन की पीड़ा छाई बन बादल बरसीं आँखें | Man Ki Pida Chhai Ban Badal Barsi Aankhe


स्पष्टीकरण: 
आँखें बादलों की तरह बरसती है, काब ? जब मन में पीड़ा होती है तब । अर्थात कवि का कहना है कि बरसती आँखे या बहते हुए आँसु यह पहचान है कि व्यक्ति का मन पीड़ित है अर्थात वह दुखी है ।

चलती साथ पटरियां रेल की फिर भी मौन | Chalti Saath Patariya Rel Ki Fir Bhi Maoun


स्पष्टीकरण:
रेल की पटरियाँ रेल के साथ चलती है फिर भी मैन रहती है । हमें ऐसा लगता है कि रेल अपने Destination तक पहुँचती है परंतु रेल को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए पटरियाँ मदद करती है । फिर भी वे मौन रहती है । अर्थात पटरियाँ रेल से नहीं कहती की मेरी सहायता से तू अपने लक्ष्य तक पहुँची है।

कवि का कहना है कि एक सच्चा शुभचिंतक एक सच्चा भला चाहने वाला अपने किए ऐहसानों को कभी नहीं बताता । और जो अपने किए ऐहसानों को बताए वह सच्चा शुभचिंतक नहीं हैै ।

सितारे छिपे बादलों की ओट में सूना आकाश | Sitare Chhipe Badalo Ki Ot Me Suna Aakash 


शब्दार्थ / अर्थ:
  • ओट - आड़ 

स्पष्टीकरण:
सितारें बादलों के पीछे छिप गए, आकाश सूना हो गया । अर्थात् कवि का कहना है कि प्रत्येक छोटी से छोटी वस्तु का अपना महत्व होता है । छोटे से सितारें आसमान से चले गए तो विशाल आसमान भी सुना - सुना लगने लगा ।

यहाँ पर समय की सीख भी मिलती है, जब आसमान में सितारे थे आसमान सुंदर लग रहा था, जब सितारे छिप गए समय बदल गया तब वहीं सुंदर आसमान सुना - सुना लगने लगा ।

तुमने दिए जिन गीतों को स्वर हुए अमर | Tumne Diye Jin Gito Ko Swar Huye Amar


स्पष्टीकरण:
अर्थात आपने जो काम किया, अमर हुआ यानी याद रखा गया । अगर अच्छा काम किया तो आपके अच्छे काम के लिए आपको याद रखा गया । बुरे काम किए तो बुरे काम के लिए याद रखा गया । यहाँ पर कवि द्वारा काम का महत्त्व समझाया जा रहा है ।

सागर में भी रहकर मछली प्यासी ही रही | Sagar Me Bhi Rahakar Machhali Pyasi Hi Rahi


स्पष्टीकरण: 
अर्थात आस - पास सब कुछ होने के बावजूद भी उसका सुख भोग ही नहीं पाया । यहाँ पर व्यक्ति की लालसा को, असीमित इच्छाओं को दर्शाया गया है । मतलब एक व्यक्ति के पास धन - दौलत, ऐशो - आराम होने के बावजूद भी और पाने की लालसा के कारण वह व्यक्ति अपनी दौलत का, अपने ऐशो - आराम का सुख भोग ही नहीं पाया । अर्थात वह धन -  दौलत, ऐशो - आराम के सागर में रहकर भी प्यासा ही रहा ।

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