Gajal Poem Class 10 Explanation In Hindi | गजल कविता स्पष्टीकरण | कक्षा १० वीं
गजल
नमस्ते विद्यार्थियों,
आज हम गजल के अंतर्गत आए हुए शेरों का स्पष्टीकरण देखेंगे । यह गजल कविता कक्षा १० वीं Gajal Poem Class 10Th की हिंदी लोकभारती पाठ्यपुस्तक की है ।
८. गजल
- मानिक वर्मा
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Gajal Poem Class 10 Explanation In Hindi | गजल कविता स्पष्टीकरण | कक्षा १० वीं
आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो,
शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखाे ।
शब्दार्थ:
१) स्वर्णिम = सोने के रंग का, सुनहरा सोनेरी, Golden.
२) शिखर = चोटी, सिरा, किसी चीज का सबसे ऊपरी भाग, Peak.
( स्वर्णिम शिखर = सबसे सुंदर )
३) शौक = लालसा, ख्वाइश ।
४) नींव = आधार, मकान / दीवार का निचला हिस्सा, Foundation.
स्पष्टीकरण:
शिखर का अर्थ होता है चोटी या किसी चीज का ऊपरी भाग । नींव, वह चीज है जो हमें नजर नहीं आती । परंतु यह चोटी या यह ऊपरी भाग उसकी नींव की वजह से ही है । यह नींव न होगी तो यह स्वर्णिम शिखर अर्थात यह सबसे सुंदर दिखने वाला हिस्सा भी नहीं होगा । कवि का कहना है कि ऊपर से ( बाहर से ) दिखने की बजाय अंदर से दिखो ।
अंदर से दिखो अर्थात अपने आपको भीतर से सुंदर बनाओ । आपका बाहरी सौंदर्य आज है कल नहीं है, परंतु भीतर से सुंदर व्यक्ति का सौंदर्य कभी भी कम नहीं होता । जैसे - छत्रपति शिवाजी महाराज, डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर, संत गाडगे महाराज, ज्योतिबा फूले, सावित्रीबाई फूले, संत कबीर आदि महापुरुष भीतर से सुंदर थे इसीलिए इनके कार्यों में भी सुंदरता नजर आती है । भारत के लोग कल भी इनकी पूजा करते थे, आज भी करते हैं और आगे भी करते रहेंगे । इन महापुरुषों को इनके भीतरी सौंदर्य ने अमर बना दिया । इस शेर में कवि का कहना है की सिर्फ बाहर से सुंदर दिखना मतलब सुंदरता नहीं है । सच्ची सुंदरता व्यक्ति के भीतर है । लेखक भीतर से सुंदर होने की सीख दे रहे है ।
चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर लिखो,
और अगर बैठो कहीं ताे मील का पत्थर दिखाे ।
शब्दार्थ:
१) गर्द = धूल, Dust.
२) मील का पत्थर = Mile Stone / एक मुहावरा ( मील का पत्थर होना = प्रभावशाली होना )
स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि जब धूल चलती है अर्थात जब धूल उड़ती है तब वह आसमान में छा जाती है, दूर - दूर तक जाती है । कवि का कहना है कि हमें भी उस धूल की तरह ही चलना है, अर्थात जब हमारे चलने का समय हो अर्थात हमारे मेहनत करने का समय हो तो इतनी मेहनत करनी चाहिए कि हमारा नाम भी दूर - दूर तक पहुँचे । जब बैठो कहीं तो मील का पत्थर दिखो । अर्थात जब कभी भी हमारे रुकने का समय हो, तो हमें मील के पत्थर की तरह दिखना है । मील का पत्थर राही को रास्ता दिखाता है, पथिक के मन में उम्मीद जगाए रखता है, मील का पत्थर लक्ष्य तक की दूरी बताता है । एक तरह से मील का पत्थर राही का मार्गदर्शन करता है । कवि का कहना है कि हमें इतनी मेहनत करनी है कि जब हम थक जाए ( मतलब हम हमारे काम से सेवानिवृत्त / Retired हो जाए ) तो हमें देखकर ही लोगों का मार्गदर्शन हो जाए । हमारी उपलब्धि / Achivement देखकर मेहनत के प्रति उनकी उम्मीद बनी रहे । उन्हें यह पता चले की मेहनत से प्राप्त किया जा सकता है । इस गजल में कवि मेहनत का महत्त्व सीखा रहे है ।
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सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं,
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखाे ।
स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि दिखने के लिए दिख रहे हो अर्थात किसी को दिखाने के लिए आप दिख रहे हो तो यह दिखना नहीं है । मतलब दूसरों को दिखाने के लिए या जताने के लिए आप अच्छे इंसान बन रहे हो तो आप अच्छे इंसान नहीं हो । जैसे की हम दान देते हैं, गरिबों को खाना खिलाते हैं, किसी की शिक्षा का खर्च उठाते है, परंतु इन सभी चीजों की video recording कर के हम हमारे दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत करते है तो हम कोई अच्छे इंसान नहीं है । हमारे अंदर दूसरों के लिए कोई दया नहीं है । हमने सिर्फ अच्छाई का चोंगा ( लिबास ) पहना है । हम सिर्फ अपने दर्शकों को दिखाना चाहते है कि हम अच्छे है, हमारे दिल में गरीबों के प्रति दया है । परंतु हम सिर्फ और सिर्फ दिखाना चाहते है, हम कोई अच्छे इंसान नहीं है । कवि का कहना है कि आदमी हो तो आदमी दिखो । अर्थात इंसान हो तो इंसान दिखो, सच्चे हो तो सच्चे दिखो, किसी को जताओ या दिखाओ मत । इस शेर में कवि दिखावे की अपेक्षा वैसा बनने की सीख दे रहे है ।
स्पष्टीकरण: २
कवि का कहना है कि सिर्फ दिखावे के लिए अच्छा मत बनो । आप अगर किसी को बताने के लिए या जताने के लिए अच्छा बन रहे हो तो आप कोई अच्छे नहीं हो । आप दूसरों को धोका दे रहे हो । शक्ल सूरत से इंसान परंतु कर्मों से हैवान मत बनो ।
जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं,
पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो ।
स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है, यह शहर पत्थरों का है और हमें वह आइना बनना है, जो पत्थरों की चोट से बिखरे ना । इस शेर में कवि हमें मजबूत इंसान बनने की सीख दे रहे है ।
आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन,
जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखाे ।
स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि एक धागे पर क्या बीत रही है यह आपको तब पता चलेगा जब आप उस धागे की तरह मोम के भीतर जलोगे । अर्थात किसी पर क्या बीत रही है यह हमें तब पता चलेगा जब उसके जैसी स्थिति में हम होंगे । हमें किसी का दुख, किसी के विचार, किसी का बर्ताव तब समझ आएगा जब उन्ही के जैसा दुख, उन्ही के जैसे हालात हमारी हो । जैसे - महलों में बैठकर गरीबी की पीड़ा, जीने के प्रति रोज का संघर्ष नहीं समझ सकते । जब कोई व्यक्ति किसीको बहुत चाहता है परंतु जिसे वह चाहता है अगर वह व्यक्ति उसे छोड़कर चला जाए तब वह व्यक्ति बहुत ज्यादा दुखी हो जाता है, हम उस व्यक्ति को उसके दुख से बाहर निकलने का बहुत प्रयत्न करते है । कभी कभार तो हम उन्हे मूर्ख भी समझते है, कवि का कहना है कि आपको उस व्यक्ति का दुख तब महसूस होगा जब वैसी ही स्थिति में आप होंगे ।
एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ,
वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो ।
शब्दार्थ:
१) धुंध = धुआँ, कोहरा
स्पष्टीकरण:
इस शेर में हमें रोशनी बनने के लिए कहा है और एक छोटा सा जुगनू कह रहा है कि रोशनी बनने के इस सफर में वह हमारे साथ है ।
इस शेर में कवि हमें सहायता करने के लिए कह रहे है । हमारे द्वारा की गई सहायता हमारे लिए छोटी हो सकती है परंतु हमारी वही छोटी सी सहायता, जिसे सहायता दी जा रही है उसके लिए बड़ी साबित हो सकती है । छोटी - छोटी सहायता से ही किसी को अपनी बड़ी समस्या से लड़ने में बल प्राप्त हो सकता है ।
स्पष्टीकरण: २
कवि का कहना है कि अगर हम किसी को छोटी - सी भी मदद कर सकते है तो हमें करना चहिए । हमारी नज़रों में वह एक छोटी - सी मदद होगी परंतु जिसे हम मदद कर रहे है उसके लिए वह मदद बहुत बड़ी हो सकती है । कवि का कहना है कि जुगनू नामक छोटा - सा कीड़ा अपनी ओर से जितनी हो सके उतनी मदद करता है । घने अंधेरे में फसे लोगों के लिए जुगनू की कुछ क्षण की रोशनी भी रास्ते का काम करती है ।
एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते,
गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो ।
स्पष्टीकरण:
इस शेर में कवि हमें मर्यादा का महत्त्व सीखा रहे है । पत्थर सीप के अंदर रहता है तभी वह मौल्यवान मोती बन पता है । हमें भी मोती की तरह मौल्यवान बनना है तो हमें हमारी मर्यादा पता होनी चाहिए ।
डर जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली,
तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो ।
स्पष्टीकरण:
इस शेर में एक कली फूल बनने से डर रही है और कवि उस कली को तितली का संघर्ष बता रहे है । कवि का कहना है कि किसी के भविष्य में क्या लिखा है यह किसी को नहीं पता, संघर्ष तो सभी को करना है, ऐसा नहीं है कि कठिन संघर्ष के बाद आपको संघर्ष ही न करना पड़े । जैसे - तितली । तितली, तितली बनने से पहले भी बहुत संघर्ष करती है इसके उपरांत भी पेट भरने के संघर्ष में उसकी मृत्यु हो सकती है, उसके पर टूट जाते है । अर्थात जीवन का नाम ही संघर्ष है । इसीलिए काली को डरना नहीं चाहिए कि भविष्य में जब वह फूल बनेगी तब उसे कोई नहीं सताएगा । कवि का कहना है कि अगर भविष्य की चिंता करके हम आज के कार्य ही करना छोड़ दे तो यह गलत है ।
कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में,
मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो ।
स्पष्टीकरण:
कवि का कहना है कि हमें अपनी एक खास पहचान बनानी है । हमें अपने कार्य की छाप छोड़नी है ।
जब हमारे जैसे गुण किसी अन्य में नजर आए तो उसे हमारा स्मरण हो । जब हमसे विपरित गुण भी किसी और में नजर आए तो उसे ऐसा लगाना चाहिए कि काश ! यह व्यक्ति हमारी तरह होता तो कितना अच्छा होता ।
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